बुल्ले शाह अब हीर ना कहे
कौपीराइट@२०१५ राजा शर्मा
कैसे रोऊँ अब आँखों से के मेरी अब नीर ना बहे
कैसी बन गयी दुनिया रे के बुल्ला अब हीर ना कहे
बंदा रूप के गुमान में खोया
प्यार पैसे वाली छाओं में सोया
टूटी जाती है मोहब्बतों की माला
मोती इक इक आँसुओं से धोया
इस दुनिया में है कोई ऐसा के जो मेरी वाली पीर ना सहे
कैसी बन गयी दुनिया रे के बुल्ला अब हीर ना कहे
धर्म दिलों को चलाना चाहे
कई बेटे और बेटियों को खाये
कैसा नीच हो गया है जमाना
कांटों भरी हैं प्रेम की राहें
कोई इनको बता दो जाकर के प्रेमी साधु पीर ना कहे
कैसी बन गयी दुनिया रे के बुल्ला अब हीर ना कहे
जात पात के बहुत हैं बहाने
लोग खुद को लगे हैं सजाने
बस गैरों को है नीचे गिराना
लगे नारे आज गूंगे लगाने
ऐसी गंदी आज हुई है सियासत के देखो वीर वीर ना रहे
कैसी बन गयी दुनिया रे के बुल्ला अब हीर ना कहे
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