Monday, July 20, 2015

जे. कृष्णमूर्ति कहते हैं १: शिक्षक (J. Krishnamurti)


जे. कृष्णमूर्ति  कहते हैं १: शिक्षक (J. Krishnamurti)

(Translated from English to Hindi by Raja Sharma)

मेरी किताब "गुरु के कदमों में" मैने मेरे गुरु के द्वारा दिये गये निर्देश लिखे हैं जिन्होंने मुझे अपने आस पास के लोगों के लिये उपयोगी होना सिखाया।

वो सभी व्यक्ति जिन्होने किताब पढ़ी है जानते हैं कि  गुरु के शब्द कितने प्रेरणादायी हैं, और कैसे वो शब्द उन लोगों को दूसरों के लिये उपयोगी होना सीखाते हैं।

मुझे मालूम है कि मुझे उन लोगों से कितना सहयोग मिला है जिन लोगों की तरफ मैं निर्देशन के लिये देखता हूँ, और मैं वो सब कुछ जो मैने उन निर्देशकों से पाया है औरों को देना चाहता हूँ।

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि गुरु के निर्देश विश्व्यापी रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। ये शब्द न केवल उन लोगों के लिये जो निश्चय ही ज्ञान के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं बल्कि उन लोगों के लिये भी उपयोगी होंगे जो जीवन में साधारण काम करते हुए भी अपने कर्तव्य को गंभीरता पूर्वक और निस्वार्थ पूर्वक कर रहे हैं।

ऐसे जीवन के कामों में सबसे महत्वपूर्ण कामों में से एक काम शिक्षक का होता है। आइये देखें गुरु ने इस काम पर अपने शब्दों से कैसे प्रकाश डाला है।

मैं वो चार योग्यतायों की चर्चा करूंगा जो कि "गुरु के कदमों में" नामक किताब में दी गयी हैं, और ये दिखाने का प्रयास करूंगा कि ये चार योग्यतायें शिक्षक, छात्र, और उनके बीच के सम्बंधों में कैसे प्रयोग की जा सकती हैं।

सबसे महत्वपूर्ण योग्यता है 'प्रेम', और मैं इसकी चर्चा पहले करूंगा। ऐसा कहते हैं कि आज के आधुनिक समय में शिक्षक के काम को और सीखे हुए पेशों जितना सम्मान नहीं मिलता है।

आज कोई भी शिक्षित व्यक्ति को शिक्षक मान लिया जाता है, और परिणाम स्वरूप उसको कम  सम्मान प्राप्त होता है। इसलिये ये स्वभाविक है कि सबसे प्रतिभाशाली छात्र शिक्षक के पेशे की तरफ़ आकर्षित नहीं होते हैं।

लेकिन वास्तविकता में शिक्षक का कर्म सबसे पवित्र और राष्ट्र के लिये सबसे महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस द्वारा उन बाल बालिकाओं के चरित्र का निर्माण होता है जो भावी नागरिक होने वाले होते हैं।

प्राचीन समय में इस कार्य को इतना पवित्र  माना जाता था कि  मात्र मंदिर के पुजारी ही शिक्षक होते थे और पाठशाला मंदिर का ही एक भाग होती थी।

भारत में तो शिक्षक पर इतना विश्वास किया जाता था कि  अभिभावक गण अपने पुत्रों को कई वर्षों के लिये शिक्षक के संरक्षण में छोड़ देते थे, और छात्र और शिक्षक एक परिवार की तरह संग रहते थे।

क्योंकि अब ये मधुर सम्बंध फिर से वापिस लाना होगा इसीलिये मैं शिक्षक की योग्यताओं में 'प्रेम' को सबसे पहले रखता हूँ, और ये प्रेम की योग्यता शिक्षक में होनी ही चाहिये।

यदि भारत को फिर से एक महान राष्ट्र बनाना है जो हम सब देखने की आशा करते हैं तो इस पुराने मधुर सम्बंध को पुनर्स्थापित करना होगा।

यह श्रंखला जारी रहेगी......धन्यवाद।

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